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संतान सप्तमी व्रत कथा इन हिंदी Pdf | Santan Saptami Vrat Katha Hindi Pdf

Santan Saptami Vrat Katha Hindi Pdf | संतान सप्तमी व्रत कथा इन हिंदी Pdf : कैसे हो आप सभी उम्मीद है। की अच्छे ही होंगे, आज इस आर्टिकल में हम आपको बताने वाले है। की कैसे आप संतान सप्तमी व्रत कथा इन हिंदी |Santan Saptami Vrat Katha PDF in Hindi को डाउनलोड कर सकते हो और साथ में Santan Saptami Vrat Katha (Hindi+English) लिरिक्स को भी इस आर्टिकल के द्वारा पढ़ सकते हो,

आप सभी से अनुरोध है। की इस आर्टिकल में अंत तक बने रहे आपको संतान सप्तमी व्रत कथा पीडीएफ की पूरी जानकारी मिल जाएगी।

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संतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha PDF

PDF Nameसंतान सप्तमी व्रत कथा | Santan Saptami Vrat Katha PDF
No. of Pages1
PDF Size0.67 Mb
LanguageHindi
CategoryReligion & Spirituality
Sourceuhqrelation.in
Download Link✔ Available
Downloads1812

Note : इस पोस्ट में दिये किसी भी Pdf Book और Pdf File का इस वेबसाइट के ऑनर से कोई सम्बन्ध नहीं है। अगर इस पोस्ट में दिए गए किसी भी Pdf Book और Pdf File से किसी को भी कोई परेशानी है तो इस Email ID rdagar011@gmail.com पर संपर्क करें। तुरंत ही उस पोस्ट को साइट से हटा दिया जायेगा।

Santan Saptami Vrat Katha in Hindi PDF

एक दिन महाराज युधिष्ठिर ने भगवान से कहा – हे प्रभू ! कोई ऐसा उत्तम व्रत बतलाइये जिसके प्रभाव से मनुष्य के सांसारिक दुःख दूर होकर वे पुत्र एवं पौत्रवान हो जाए | 

यह सुनकर भगवान बोले – हे राजन ! मैं तुमको एक पौराणिक इतिहास सुनाता हूँ ध्यानपूर्वक सुनो! एक समय लोमष ऋषि ब्रजराज की मथुरापुरी में वसुदेव देवकी के घर गए | 

ऋषिराज को आया देख दोनों अंत्यंत प्रसन्न हुए तथा उनको उत्तम आसान पर बैठा कर उनका अनेक प्रकार से वंदन और सत्कार किया | फिर मुनि के चरणोदक से अपने घर तथा शरीर को प्रवित्र किया | वह प्रसन्न होकर उनको कथा सुनाने लगे | कथा कहते हुए लौमष ऋषि ने कहा की हे – देवकी ! दुष्ट दुराचारी कंस ने तुम्हारे कई पुत्र मार डेल हैं जिसके कारन तुम्हारा मन अत्यंत दुखी है |  ऐसी प्रकार राजा नहुष की पत्नी चंद्रमुखी भी दुखी रहा करती थी किन्तु उसने संतान सप्तमी का व्रत विधि विधान सहित किया | जिसके प्रताप से उनको संतान का सुख प्राप्त हुआ | 

यह सुनकर देवकी ने हाथ जोड़कर मुनि से कहा – हे ऋषिराज ! कृपा करके रानी चंद्रमुखी का सम्पूर्ण वृतांत्त तथा इस कथा का विधान विस्तार पूर्वक बतलाइये जिससे मैं भी इस दुःख से मुक्त हो सकूँ |
लोमष ऋषि ने कहा कि  हे देवकी ! अयोध्या का राजा नहूष थे उनकी पत्नी चंद्रमुखी अत्यंत सुन्दर थी | उनके नगर में विष्णुगुप्त नाम का एक ब्राम्हण रहता था | उनकी स्त्री का नाम भद्रमुखी था | वह भी अत्यंत रूपवती सुन्दर थी |
रानी और ब्राह्मणी में अत्यंत प्रेम था | एक दिन दोनों सरयू नदी में स्नान करने के लिए गई | वहां उन्होंने देखा कि
बहुत सी स्त्रियां सरयू नदी में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहन कर एक मंडप में शंकर एवं पार्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा कर रहीं थीं |
रानी और ब्राह्मणी ने यह देखकर उन स्त्रियों से पुछा की बहनों ! तुम यह किस देवता का और किस कारण से पूजन व्रत आदि कर रही हो | यह सुन स्त्रियों ने कहा की हम संतान सप्तमी का व्रत कर रही है और हमने शिव पार्वती का पूजन चन्दन आदि से षोडशोपचार विधि से किया है | यह सब ऐसी पुनीत संतान सप्तमी व्रत का विधान है |
यह सुनकर रानी और ब्राह्मणी ने भी इस व्रत के करने का मन ही मन संकल्प किया और घर वापिस लौट आई | ब्राह्मणी भद्रमुखी तो इस व्रत को नियमपूर्वक करती रही किन्तु रानी चंद्रमुखी राजमद के कारन कभी इस को करती, कभी न करती | कभी भूल हो जाती | कुछ समय बाद दोनों मर गईं दूसरे जन्म में रानी बंदरिया और ब्राह्मणी ने मुर्गी की योनि पाई |
परन्तु ब्राह्मणी मुर्गी की योनि में भी कुछ नहीं भूली और भगवान शंकर तथा पार्वती का ध्यान करती रही , उधर रानी बंदरिया की योनि में भी सब कुछ भूल गई | थोड़े समय के बाद दोनों ने यह देह त्याग दी |
अब इनका तीसरा जन्म मनुष्य योनि में हुआ | उस ब्राह्मणी ने एक ब्राह्मणी के यहाँ कन्या के रूप में जन्म लिया और ब्राह्मण कन्या का नाम भूषणदेवी  रखा गया तथा विवाह गोकुल निवासी अग्निशील  ब्राह्मण से कर दिया, भूषणदेवी इतनी सुन्दर थी कि वह आभूषण रहित होते हुए भी अत्यंत सुन्दर लगाती थी | कामदेव की पत्नी रति भी उसके सम्मुख लजाती थी | भूषणदेवी के अत्यंत सुन्दर सर्वगुण  संपन्न चन्द्रमा के सामान धर्मवीर, कर्मनिष्ठ , सुशील स्वभाव वाले आठ पुत्र उत्पन्न हुए |

यस सब शिवजी के व्रत का पुनीत फल था | दूसरी ओर शिव विमुख रानी के गर्भ से कोई पुत्र नहीं हुआ , वह निसंतान दुखी रहने लगी | रानी और ब्राह्मणी में जो प्रीति पहले जन्म में थी वह अब भी बनी रही |
रानी जब वृद्ध अवस्था को प्राप्त होने लगी तब उसके गंगा बहरा तथा बुद्धिहीन अल्प आयु वाला पुत्र हुआ वह नौ वर्ष की आयु में संसार को छोड़कर चला गया |
अब तो रानी पुत्र शोक से उत्पन्न दुखी हो व्याकुल रहने लगी | दैवयोग से भूषण देवी ब्राह्मणी , रानी के यहाँ अपने पुत्रो को लेकर पहुंची | रानी का हाल सुनकर उसे भी बहुत दुःख हुआ किन्तु इसमें किसी का क्या वश |
कर्म और प्रारब्ध के लिखे को स्वम ब्रम्हा भी मिटा नहीं सकते |
रानी कर्मच्युत भी थी ऐसी कारण उसे दुःख भोगना पड़ा | इधर रानी ब्राह्मणी के इस वैभव और आठ पुत्रो को देखकर अपने मन में ईर्ष्या करने लगी तथा उसके मन में पाप उत्पन्न हुआ | उस ब्राह्मणी ने रानी का संताप दूर करने के निमित्त अपने आठों पुत्र रानी के पास छोड़ दिए |
रानी ने पाप के वशीभूत होकर उन ब्राह्मणी पुत्रो की हत्या करने के विचार से लडडू में विष मिलाकर उनको खिला दिया परंतू भगवान शंकरर की कृपा से एक भी बालक की मृत्यु न हुई |
यह देखकर तो रानी अत्यंत ही आश्चर्य चकित हो गई और इस रहस्य का पता लगाने की मन में ठान ली | भगवान की पूजा से निवृत्त होकर जब भूषणदेवी आई तो रानी ने उससे कहा की मैंने तेरे पुत्रो को मारने के लिए इनको जहर मिलकार लडडू खीला दिया किन्तु इनमे से एक भी नहीं मारा तूने कौन सा दान , पुण्य , व्रत किया है जिसके कारण तेरे यह पुत्र नहीं मरे और तू नित नए खुख भोग रही है | तेरा बड़ा सौभाग्य है | इसका भेद तू मुझसे निष्कपट होकर समझा मैं तेरी बड़ी ऋणी रहूंगी |
रानी के ऐसे दीन वचन सुनकर भूषण ब्राह्मणी कहने लगी – सुनो तुमको तीन जन्म का हाल कहती हूँ , सो ध्यानपूर्वक सुनना | पहले जन्म में तुम राजा नहुष की पत्नी थी और तुम्हारा नाम चंद्रमुखी था | मेरा भद्रमुखी था और ब्राह्मणी थी, हम तुम अयोध्या में रहते थे और मेरी तुम्हारी बड़ी प्रीति थी | एक दिन दोनों सरयू नदी में स्नान करने गए और दूसरी स्त्रियों को संतान सप्तमी का उपवास शिवजी का पूजन अर्चन करते देख कर हमने इस उत्तम व्रत को करने की प्रतिज्ञा की थी | किन्तु तुम सब कुछ भूल गई और झूठ बोलने का दोष तुमको लगा और तुम आज भी भोग रही हो |
मैंने इस संतान सप्तमी व्रत को आचार विचार सहित नियम पूर्वक सदैव किया और आज भी करती हूँ | दूसरे जन्म में तुमने बंदरिया का जन्म लिया और मुझे मुर्गी की योनि मिली | भगवान शंकर की कृपा से इस व्रत के प्रभाव तथा भगवान  को इस जन्म में भी न भूली और निरंतर उस व्रत को नियमानुसार करती रही | तुम अपने बंदरिया के जन्म में भी भूल गई |
मैं तो समझती हूँ की तुम्हारे ऊपर यह जो भारी संकट है उसका एकमात्र यही कारन है और दूसरा कोई इसका कारन नहीं हो सकता | इसलिए मैं तो कहती हूँ कि अब भी संतान सप्तमी व्रत को विधि सहित करिये जिससे तुम्हारा यह संकट दूर हो जाये |
लोमश ऋषि ने कहा – हे देवकी ! भूषण ब्राह्मणी के मुख से अपने पूर्व जनम की कथा तथा संतान सप्तमी व्रत संकल्प इत्यादि सुनकर रानी को पुरानी बातें याद आ गई और पश्च्याताप करने लगी तथा भूषण ब्राह्मणी के चरणों में पड़कर क्षमा याचना करने लगी और भगवान शंकर – पार्वती जी की अपार महिमा के गीत गाने लगी |
उस दिन से रानी नियमानुसार संतान सप्तमी का व्रत किया जिसके प्रभाव से रानी को संतान सुख भी मिला तथा सम्पूर्ण सुख भोग कर रानी शिवलोक को गई |
भगवान शंकर के व्रत का ऐसा प्रभाव है की पथ भ्र्ष्ट मनुष्य भी अपने पथ पर अग्रसर हो जाता है और अनंत ऐश्वर्य भोगकर मोक्ष को प्राप्त होता है | लोमश ऋषि ने फिर कहा हे देवकी ! तुम भी इस संतान सप्तमी व्रत को करने का संकल्प अपने मन में करो तो तुमको भी संतान सुख मिलेगा |
इतनी कथा सुनकर देवकी हाथ जोड़कर लोमश ऋषि से पुछने लगी हे ऋषिराज ! मैं इस पुनीत संतान सप्तमी के व्रत को अवश्य करुँगी , कृपा आप कल्याणकारी एवं संतान सुख देने वाले इस संतान सप्तमी व्रत का विधान , नियम विधि आदि विस्तार से समझाइए |
यह सुनकर ऋषि बोले – हे देवकी ! यह पुनीत संतान सप्तमी व्रत भादों के महीने में शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन लिया जाता  है | उस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर किसी नदी अथवा कुए के पवित्र जल में स्नान करके निर्मल वस्त्र पहिनने चाहिए | श्री शंकर भगवान् तथा जगदम्बा पार्वती जी की मूर्ति की स्थापना करें | प्रतिमाओ के सम्मुख सोने चाँदी के तारो का अथवा रेशम का एक गंडा बनावे उस गंडे में सात गाँठे  लगनी चाहिए | इस गंडे  को धूप , दीप , अष्ट गंध से पूजा करके अपने हाथ में बांधे और भगवान शंकर से अपनी कामना सफल होने की प्रार्थना करें
तदनन्तर सात पुआ बनाकर भगवान का भोग लगावें और सात ही पुए एवं यथा शक्ति सोने या चाँदी की अंगूठी बनाकर इन सबको एक ताम्बे के पारा में रखकर और उनका शोडशोचार विधि से पूजन करके किसी सदाचारी , धर्मनिष्ठ , सत्पात्रा ब्राह्मण को दान देवे | उसके पश्च्यात सात पुआ स्वयं प्रसाद के रूप में ग्रहण करें |
इस प्रकार इस संतान सप्तमी व्रत का परायण करना चाहिए | प्रतिसाल की शुक्लपक्ष की सप्तमी के दिन , हे देवकी ! इस व्रत को इस प्रकार करने से समस्त पाप नष्ट होते हैं और भाग्यशाली संतान उत्पन्न होती है तथा अंत में शिवलोक की प्राप्ति होती है |
हे देवकी ! नैने तुमको संतान सप्तमी का व्रत सम्पूर्ण विधान विस्तार सहित वर्णन किया है | उसको अब तुम नियम पूर्वक करो , जिससे तुमको उत्तम संतान पैदा होगी | इतनी कथा कहकर भगवान आनंद कंद श्री कृष्ण ने धर्मावतार युधिष्ठिर से कहा कि  श्री लोमष ऋषि इस प्रकार हमारी माता को शिक्षा देकर चले गए |  ऋषि के कथानुसार हमारी माता देवकी ने इस व्रत को नियमानुसार किया जिसके प्रभाव से हम उत्पन्न हुए |
यह व्रत विशेष रूप से स्त्रियों के लिए कल्याणकारी है परन्तु पुरुषो को भी समान रूप से कल्याण दायक है | संतान सुख देने वाला पापों का नाश करने वाला यह उत्तम व्रत है | नियम पूर्वक जो कोई इस व्रत को करता है और भगवान  शंकर और पार्वती जी की सच्ची मन से आराधना करता है निश्चय ही अमरपद प्राप्त कर अंत में शिवलोक को जाता है |

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